सम्पादक की कलम से : हांफती चिकित्सा सेवा
Sandesh Wahak Digital Desk : यूपी में एक ओर प्रचंड गर्मी पड़ रही है तो दूसरी ओर चिकित्सा सेवा हांफने लगी है। डायरिया से लेकर लू तक की चपेट में आने वाले मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है। हालत यह है कि अकेले बलिया में 24 घंटे में 36 मौतें हो चुकी हैं। आशंका यह है कि ये मौतें लू के कारण हुई हैं। इन मौतों के बाद चिकित्सा विभाग सतर्क हुआ है और वहां के जिला अस्पताल की व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने में जुट गया है।
सवाल यह है कि :-
- गर्मी को देखते हुए पूरे प्रदेश में व्यापक चिकित्सा इंतजाम क्यों नहीं किए गए? तमाम अस्पताल जरूरी संसाधनों से क्यों जूझ रहे हैं?
- अधिकांश अस्पतालों में दवाओं से लेकर जांच उपकरणों तक की कमी क्यों बनी हुई है?
- चिकित्सकों और पैरामेडिकल के पद वर्षों से खाली क्यों पड़े हैं?
- अस्पतालों में व्याप्त इस अव्यवस्था का जिम्मेदार कौन है?
- सरकार ने कोरोना जैसी महामारी के बावजूद कोई सबक क्यों नहीं सीखा?
- क्या ऐसे ही आम आदमी को बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराने का सरकार का सपना पूरा होगा?
सरकार के तमाम दावों के बावजूद आम आदमी को बेहतर छोड़िए सामान्य चिकित्सा सुविधाएं तक मयस्सर नहीं हो रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों, दवाओं व जांच उपकरणों की कमी है। मसलन लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में सामान्य रोगों से ग्रसित मरीज को भी इलाज के लिए अस्पताल में घंटों लाइन में लगना पड़ता है। अधिकांश अस्पतालों में जरूरी दवाएं तक नहीं उपलब्ध हैं। जांच उपकरणों की कमी के कारण 15 से 20 दिन बाद मरीज के जांच का नंबर आता है। ऐसे में गंभीर रोगों के मरीजों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वहीं विशेषज्ञ चिकित्सकों का टोटा है। डॉक्टरों के तमाम पद वर्षों से खाली पड़े हैं। सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शो पीस बनकर रह गए हैं। इसके कारण दूरदराज के मरीज लखनऊ के अस्पतालों में पहुंचते हैं। इससे यहां के अस्पतालों पर मरीजों का बोझ बढ़ जाता है।
चिकित्सकीय व्यवस्था में कोई ठोस सुधार नहीं
हालत यह है कि एक डॉक्टर एक दिन में कम से कम सौ से अधिक मरीजों को चिकित्सकीय सलाह देता है। जब राजधानी का यह हाल है तो अन्य जिलों के अस्पतालों की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। हैरानी की बात यह है कि कोरोना महामारी के बावजूद चिकित्सकीय व्यवस्था में कोई ठोस सुधार होता नहीं दिख रहा है। हर साल गर्मी और बारिश में अस्पताल मरीजों का इलाज करने में हांफने लगते हैं। वहीं चिकित्सा विभाग मौसम का ध्यान रखते हुए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं बनाता है।
बलिया में लू या अन्य कारणों से हुई मौतें चिकित्सा व्यवस्था में फैली खामियों को उजागर करती हैं। जाहिर है यदि सरकार लोगों को बेहतर चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना चाहती है तो उसे न केवल अस्पतालों को संसाधनों से लैस करना होगा बल्कि मौसमी रोगों से निपटने के लिए पुख्ता रणनीति बनानी होगी अन्यथा बलिया जैसी तस्वीर अन्य जिलों में भी दिख सकती है।
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