संपादक की कलम से: लोकतंत्र में रेवड़ी कल्चर के नतीजे
कांग्रेस की गहलोत सरकार ने अभी से सौ यूनिट तक फ्री बिजली व पांच सौ में गैस सिलेंडर देने का ऐलान कर एक बार फिर सत्ता के लिए जारी रेवड़ी कल्चर पर चर्चा तेज कर दी है।
Sandesh Wahak Digital Desk: राजस्थान के चुनावी वर्ष में कांग्रेस की गहलोत सरकार ने अभी से सौ यूनिट तक फ्री बिजली व पांच सौ में गैस सिलेंडर देने का ऐलान कर एक बार फिर सत्ता के लिए जारी रेवड़ी कल्चर पर चर्चा तेज कर दी है। कर्नाटक चुनाव में फ्री के नारे की सफलता के बाद कांग्रेस अब राजस्थान व अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसे आजमाने की तैयारी कर रही है। रेवड़ी कल्चर को अधिकांश दलों ने स्वीकार कर लिया है और इसे सत्ता पाने का सबसे सरल माध्यम माना जा रहा है।
चुनाव परिणामों से भी लगता है कि जनता में इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक तक रेवड़ी कल्चर पर चिंता जता चुका है। कोर्ट ने सरकार और चुनाव आयोग से इस मामले में जरूरी फैसला लेने को कहा है। बावजूद इसके सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दल इस मामले में एक कदम आगे बढ़ते नहीं दिख रहे हैं।
सवाल यह है कि…
- क्यों जनता को मुफ्त की वस्तुएं पसंद आ रही हैं?
- क्या ऐसी सियासत राज्य और देश को आर्थिक रूप से दिवालिया नहीं बना देंगी?
- इसकी पूर्ति के लिए धन की व्यवस्था कहां से होगी?
- क्या इसके कारण मध्यमवर्ग पर टैक्स का भार, महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही?
- क्या ऐसी घोषणाएं वोट का सौदा नहीं मानी जानी चाहिए?
- केंद्र व चुनाव आयोग ने इस पर नियंत्रण लगाने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया?
सत्ता पाने का शार्टकट है ‘रेवड़ी कल्चर’
सत्ता पाने के लिए देश में रेवड़ी कल्चर की शुरुआत दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु से हुई। चुनाव जीतने के लिए मंगलसूत्र से लेकर टीवी और साड़ी तक बांटी गयी। अब यह पूरे देश में सियासी दलों का सत्ता पाने का शार्टकट बन चुका है। मतदाताओं को लुभाने के लिए दलों ने मुफ्त बिजली-पानी, अनाज, लैपटॉप, मोबाइल, स्कूटी और बेरोजगारी भत्ता को हथियार बना लिया है और इसमें लगातार नयी-नयी चीजें जुड़ती जा रही हैं। यह स्थिति तब है जब आरबीआई ने साफ तौर पर कह दिया है कि फ्री की वस्तुएं देश और राज्य सरकारों की आर्थिक सेहत के लिए खतरनाक हैं। इसके कारण न केवल राज्यों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है बल्कि विकास कार्य भी बाधित हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट रेवड़ी कल्चर पर कर चुका है टिप्पड़ी
हैरानी की बात यह है कि सियासी दल इसे जनकल्याण बता रहे हैं और इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह जनकल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त के चुनावी वादों के बीच लक्ष्मण रेखा खींचे। मुफ्त की इन योजनाओं के कारण सबसे अधिक परेशान मध्यम वर्ग है। सरकारें मुफ्त की वस्तुएं देने के लिए उस पर लगातार करों का बोझ बढ़ाती जा रही हैं। वहीं रोजगार के नए साधनों को सृजित करने के लिए सरकार के पास पैसे की कमी हो गयी है। लिहाजा बेरोजगारी और महंगाई साथ-साथ बढ़ रही है।
आने वाले दिनों में कई राज्यों का दिवाला निकलना तय
दूसरी ओर राजनीतिक जागरूकता के अभाव के कारण जनता भी मुद्दों पर वोट न देकर मुफ्त की रेवडिय़ों के झांसे में आ रही है। साफ है यदि इस पर जल्द नियंत्रण नहीं लगाया गया तो आने वाले दिनों में राज्यों का दिवाला निकलना तय है।
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