संपादक की कलम से: बदलते परिवेश में भारत-नेपाल रिश्ते
प्रचंड की कूटनीति भारत-चीन के तल्ख रिश्तों को देखते हुए नेपाल को दोनों देशों से अधिक से अधिक लाभ दिलाने की है। प्रचंड पर भारत से रिश्ते सुधारने का नेपाली जनता का दबाव भी काम कर रहा है क्योंकि दोनों देशों की सभ्यता-संस्कृति एक है।
Sandesh Wahak Digital Desk: भारत और नेपाल के प्रधानमंत्रियों ने सोनौली सीमा के पास केवटलिया गांव और नेपाल के भैरहवा के करीब निर्मित होने वाले इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट का वर्चुअल शिलान्यास किया। इस मौके पर पीएम मोदी ने जहां यह ऐलान किया कि दोनों देशों के बीच बॉर्डर बाधा नहीं बनेंगे वहीं नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने साफ किया कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को वार्ता के जरिए सुलझाया जाएगा। इस दौरान भारत-नेपाल के बीच कई समझौते हुए।
सवाल यह है कि…
- क्या पिछले एक दशक में भारत-नेपाल संबंधों में आई तल्खी को नेपाली प्रधानमंत्री की यात्रा कम कर पाएगी?
- क्या चीन के प्रति मित्रवत रुख रखने वाले प्रचंड से भारत सरकार सहज महसूस करेगी?
- क्या नेपाल में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को कूटनीति और सहयोगी रिश्तों से कम किया जा सकेगा?
- क्या चीन की विस्तारवादी नीतियों का सच नेपाली जनता जान चुकी है और जनमत के दबाव के कारण ही प्रचंड भारत से रिश्तों को मधुर और मजबूत करना चाहते हैं?
पहले चीन की तरफ था झुकाव
नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति और लोकतंत्र की स्थापना के साथ ही दोनों देशों के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव रहे। चीन के प्रभाव में आकर नेपाल सरकार ने न केवल भारत के खिलाफ मोर्चा खोला बल्कि सीमा विवाद को तनाव के चरम तक पहुंचा दिया था। हालांकि भारत ने इसे कभी तूल नहीं दिया। जहां तक प्रचंड की यात्रा का सवाल है तो यह समझना जरूरी कि वे जब 2008 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने भारत की जगह चीन की पहली यात्रा की थी। उनके बयानों से भी दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ा।
प्रचंड भारत के साथ सम्बन्ध बनाने को हैं उत्सुक
उन्होंने कहा था कि भारत-नेपाल के बीच समझौतों को खत्म या बदल देना चाहिए। 2016-17 के बीच प्रचंड जब फिर प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने कहा था कि नेपाल अब वह नहीं करेगा, जो भारत कहेगा। हालांकि 2017 में सत्ता छिनने के बाद प्रचंड को अहसास हुआ कि भारत के साथ रिश्ते खराब करने से उनका नुकसान हो रहा है। इसके अलावा वे चीन की नेपाल में बढ़ती दखलंदाजी से भी चिंतित हैं और भारत के साथ मधुर संबंध बनाने को शायद उत्सुक भी हैं।
दोनों देशों की सभ्यता-संस्कृति में है समानता
हालांकि प्रचंड की कूटनीति भारत-चीन के तल्ख रिश्तों को देखते हुए नेपाल को दोनों देशों से अधिक से अधिक लाभ दिलाने की है। प्रचंड पर भारत से रिश्ते सुधारने का नेपाली जनता का दबाव भी काम कर रहा है क्योंकि दोनों देशों की सभ्यता-संस्कृति एक है। दोनों के बीच रोटी-बेटी के संबंध हैं। नेपाल की अधिकांश अर्थव्यवस्था भारत पर निर्भर है। साथ ही चीन से अपने को बचाए रखने के लिए भी उसे भारत से मजबूत संबंध चाहिए। यही वजह है कि प्रचंड और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल चीन पर भारत को फिर से तवज्जो दे रही है।
भारत भी मधुर संबंधों का इच्छुक है क्योंकि इसके जरिए वह इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रख सकता है। यानी दोनों देशों को एक-दूसरे की जरूरत है। ऐसे में भविष्य में भारत-नेपाल रिश्ते आगे बढ़ते दिख सकते हैं।
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