संपादकीय: हिंद-प्रशांत द्वीपीय देश और भारत
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को देखते हुए भारत ने बड़ा दांव चला है। वह न केवल इस क्षेत्र में क्वाड के जरिए चीन को घेर रहा है बल्कि महासागरीय देशों की ओर मदद का हाथ बढ़ाकर कूटनीति चाल भी चल दी है।
Sandesh Wahak Digital Desk: हिन्द-प्रशांत द्वीपीय देशों में भारत ने प्रभावी दस्तक दी है। पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी में आयोजित हिंद-प्रशांत द्वीपीय सहयोग मंच के शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की शिरकत और इन देशों के लिए की गई तमाम घोषणाओं ने साफ कर दिया है कि अब भारत इन महासागरीय देशों के सतत विकास के लिए सक्रिय भूमिका निभाने जा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान इन देशों ने न केवल भारतीय प्रधानमंत्री का जोरदार स्वागत किया है बल्कि मजबूत साझेदार बनने का संकेत भी दिया है।
सवाल यह है कि…
- हिंद-प्रशांत द्वीपीय देशों के प्रति भारतीय विदेश नीति में बदलाव क्यों आया?
- क्या भारत की मौजूदगी से इन देशों में चीन की विस्तारवादी नीति व उसके प्रभाव पर अंकुश लग सकेगा?
- भारत के लिए इन देशों का सामरिक और कूटनीति महत्व क्या है?
- क्या हिंद-प्रशांत द्वीपीय देश भारत के लिए फायदे का सौदा साबित होंगे?
- क्या इन देशों में निवेश से भारतीय अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी?
- क्या आत्मनिर्भर प्रशांत द्वीपीय देश चीन के खिलाफ एक रक्षा दीवार की भूमिका निभा सकेंगे?
कई देशों का फायदा उठा रहा है चीन
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को देखते हुए भारत ने बड़ा दांव चला है। वह न केवल इस क्षेत्र में क्वाड के जरिए चीन को घेर रहा है बल्कि महासागरीय देशों की ओर मदद का हाथ बढ़ाकर कूटनीति चाल भी चल दी है। ये देश काफी पिछड़े हैं। कभी इन देशों की मदद ऑस्ट्रेलिया व फ्रांस करते थे लेकिन फ्रांस की बदहाल हो रही हालत व ऑस्ट्रेलिया के अंदरूनी सियासी मामलों के चलते इन देशों को बेहद कम मदद मिल रही थी। इसका फायदा चीन ने उठाना शुरू कर दिया। चीन ने इन द्वीप समूह वाले देशों के प्रति आक्रामक रवैया अपनाया। वह निवेश के नाम पर यहां के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है।
इतना ही नहीं चीन कई देशों में सत्ता परिवर्तन कर अपनी सैन्य स्थिति को भी मजबूत करने में जुटा है। चीन की इस विस्तारवादी नीति का इन देशों में चतुर्दिक विरोध होने लगा है। यदि इस क्षेत्र पर चीन की पकड़ मजबूत हो गयी तो इसका सीधा असर मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर पड़ेगा। चीन जब चाहेगा दूसरे देशों के आवागमन को बाधित कर देगा।
चीन की चालाकी समझ चुका है भारत
भारत ने चीन की इस चालाकी को भांप लिया है। यही वजह है कि वह प्रशांत द्वीपीय देशों में चीन के प्रति बढ़ते असंतोष को देखते हुए यहां अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। लिहाजा भारत ने इन देशों में न केवल भारी मात्रा में निवेश की घोषणा की है बल्कि यहां के नागरिकोंं को आत्मनिर्भर बनाने का बीड़ा भी उठाया है।
भारत ने जिन 12 सूत्रीय एक्शन प्लान के तहत द्वीप समूह वाले देशों की मदद का खाका तैयार किया है, उससे इन सभी देशों की अगले कुछ सालों में पूरी तस्वीर बदल जाएगी। इसका सीधा फायदा भारत को मिलेगा और यहां से उसे चीन को बेदखल करने में अधिक समय नहीं लगेगा। कुल मिलाकर यह चीन के खिलाफ भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है।
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