सम्पादक की कलम से : नोटबंदी पर एक और फैसले के मायने
Sandesh Wahak Digital Desk : नोटबंदी के साढ़े छह वर्ष बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बड़ा फैसला लिया है। इसके तहत तीस सितंबर तक दो हजार मूल्य वर्ग के नोट को चलन से बाहर कर दिया जाएगा। इस अवधि के दौरान यह मुद्रा वैध रहेगी।
सवाल यह है कि :-
- दो हजार के नोट को वापस लेने की प्रमुख वजह क्या है?
- क्या कालेधन को बाहर निकालने और नकली नोटों पर शिकंजा कसने के लिए सबसे बड़े नोट का एक बार फिर इस्तेमाल किया गया है?
- इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा?
- क्या कुछ राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह फैसला लिया गया है?
- यदि नोट को वापस लेना ही था तो इसकी शुरुआत क्यों की गई?
- क्या मौद्रिक नीति में अतिशीघ्रता से बदलाव करने से बैंकिंग सिस्टम और सरकार की साख पर बट्टा नहीं लगेगा?
आरबीआई द्वारा क्लीन नोट पॉलिसी के तहत दो हजार रुपये के नोट बंद करने के ऐलान के पीछे कई वजहें हैं। आरबीआई का दावा है कि नोटबंदी के वक्त बाजार और अर्थव्यवस्था पर असर को कम करने के लिए ये नोट छापे गए थे और अब इनका उद्देश्य पूरा हो चुका है। लिहाजा इनकी छपाई बंद की जा चुकी है और इसका इस्तेमाल भी कम हो रहा है लेकिन यदि नोटों का चलन दस फीसदी से भी कम था तो इस ऐलान की जरूरत क्या थी?
आरबीआई के मुताबिक देश में 3.62 लाख करोड़ के नोट बाजार में हैं और ये बैंकों तक पहुंच नहीं रहे हैं। वहीं इसकी आड़ में नकली नोटों का कारोबार गर्म है। खुफिया सूचना यह है कि इन नोटों की नकली खेप नेपाल के जरिए भारत पहुंच रही है। इसके अलावा दो हजार के नोटों का इस्तेमाल चुनावों के दौरान भी धड़ल्ले से किया जाता है। इस बेहिसाब रुपये का इस्तेमाल रोकने में आरबीआई के पास यही एक मात्र रास्ता बचा है कि वह इनको चलन से बाहर कर दें।
कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आरबीआई का ठोस कदम
सरकार जिस तरह कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रही है, उसमें आरबीआई का यह कदम सहयोगात्मक साबित हो सकता है। इसमें दो राय नहीं कि जिस समय आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की गई थी उससे काफी मात्रा में कालाधन बाहर आया था।
कार्रवाई से बचने के लिए तमाम लोगों ने पांच सौ और हजार के नोटों की गड्डियां जला या फेंक दी थीं। यह दीगर है कि अचानक हुई नोटबंदी से बाजार में अफरा-तफरी मच गयी थी लेकिन इसका आम जनता पर सकारात्मक असर पड़ा और भाजपा को इसका विधानसभा और लोकसभा चुनावों में फायदा भी मिला।
मौद्रिक नीति पर अधिक प्रयोग करने से नकारात्मक असर पड़ता
ऐसे में विपक्ष की इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ताजा फैसले के पीछे केंद्र की भाजपा सरकार की मंशा चुनाव में इसका फायदा उठाने की है। हालांकि सरकार को इस बात पर गौर करना चाहिए कि मौद्रिक नीति को लेकर बहुत अधिक प्रयोग करने का असर मुद्रा की साख को लेकर बाजार में गलत संदेश जाता है और इससे अर्थव्यवस्था की स्थिरता और पूंजी प्रवाह पर नकारात्मक असर पड़ता है।