सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- SC-ST ACT में अभद्र भाषा कह देना मुकदमे के लिए काफी नहीं
Sandesh Wahak Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 (एससी-एसटी एक्ट) के प्रविधानों के तहत किसी व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा चलाने से पहले चार्जशीट में कम से कम उन शब्दों का उल्लेख वांछनीय है, जो आरोपी ने लोगों के समक्ष कहे हों. इससे अदालतें अपराध का संज्ञान लेने से पहले यह पता लगाने में सक्षम होंगी कि चार्जशीट में एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला बनता है अथवा नहीं.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें एक व्यक्ति के विरुद्ध एससी-एसटी एक्ट की धारा-तीन (एक) (10) के तहत चार्जशीट दाखिल किया गया था. यह धारा एससी या एसटी के किसी सदस्य को शर्मिंदा करने के उद्देश्य से सार्वजनिक रूप से देखे जाने वाले स्थान पर जानबूझकर अपमान करने या धमकी देने से संबंधित है.
जस्टिस रविन्द्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि विधायिका का उद्देश्य स्पष्ट प्रतीत होता है कि शर्मिंदा करने के लिए हर अपमान या धमकी एससी-एसटी एक्ट की धारा-तीन (एक) (10) के तहत अपराध नहीं होगा, जब तक कि ऐसा सिर्फ पीडि़त के एससी या एसटी होने की वजह से न किया जाए.
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई किसी दूसरे व्यक्ति को सार्वजनिक स्थान पर बेवकूफ, मूर्ख या चोर कहता है तो यह निश्चित रूप से अपशब्दों या अभद्र भाषा के इस्तेमाल से जानबूझकर अपमान या शर्मिंदा करने का कृत्य होगा.
अगर इन शब्दों का उपयोग एससी या एसटी के विरुद्ध किया जाता है तो भी जातिसूचक टिप्पणियों के अभाव में ये धारा-तीन (एक) (10) लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे.