सम्पादक की कलम से : यूरोपीय संघ को आईना

Sandesh Wahak Digital Desk : रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यूरोपीय संघ (ईयू) को भारत ने एक बार फिर आईना दिखाया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कर दिया है कि भारत, रूस से कच्चा तेल खरीदता रहेगा और यूरोपीय संघ के देशों को इस मामले में अपनाए जा रहे दोहरे मापदंड से बचना चाहिए। भारत ने ईयू परिषद के नियम का हवाला भी दिया।

सवाल यह है कि :-

  • यूरोपीय संघ, भारत की नीतियों से तिलमिला क्यों रहा है? 
  • क्या किसी संप्रभु देश को अपने राष्ट्रीय हितों के हिसाब से नीति बनाने से रोका जा सकता है?
  • भारत से महंगा तेल खरीदने के कारण यूरोपीय देश भडक़े हुए हैं?
  • रूस पर प्रतिबंध लगाने वाले देश दोहरा मापदंड क्यों अपना रहे हैं?
  • विश्व के देशों को यदि परेशानी हो रही है तो वे क्यों नहीं शांति की पहल कर रहे हैं?
  • क्या रूस पर लगाए गए प्रतिबंध बेअसर हो चुके हैं?
  • भारत को अपने मित्र देश पर प्रतिबंध क्यों लगाना चाहिए?
रूस और यूक्रेन के बीच जंग की तस्वीर (प्रतीकात्मक)

रूस-यूक्रेन के बीच पिछले सवा साल से जंग जारी है। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों ने रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इसी क्रम में यूरोपीय संघ ने रूस से कच्चा तेल व गैस लेना बंद कर दिया। अब जब युद्ध लंबा खिंच गया तो इनकी हालत पतली हो गई है क्योंकि इन देशों के नागरिक रूस के तेल और गैस आपूर्ति पर निर्भर है। इसके कारण यूरोपीय देशों में महंगाई चरम पर पहुंच गयी है। वहीं इसका फायदा भारत की तेल कंपनियों ने उठाया।

रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा भारत

भारत, रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है और इसे प्रोसेस कर यूरोपीय देशों को बेच रहा है। आंकड़ों के मुताबिक भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने दिसंबर 2022 से अप्रैल 2023 के बीच ईयू को औसतन 2.84 लाख बैरल प्रोसेस तेल का प्रतिदिन निर्यात किया है। माना जा रहा है कि यह निर्यात आने वाले समय में 3.60 लाख बैरल प्रतिदिन हो जाएगा।

यूरोपीय संघ

वहीं यूरोपीय संघ के देशों की हालत यह है कि वे रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद नहीं सकते और इसके बिना रह भी नहीं सकते हैं। नागरिकों के आक्रोश से बचने के लिए अब उन्हें महंगे दाम पर भारत से यह तेल खरीदना पड़ रहा है। यही वजह है कि वे भारत पर भी रूस से तेल न खरीदने का दबाव बना रहे हैं लेकिन विदेश मंत्री ने इससे न केवल साफ मना कर दिया है बल्कि ईयू परिषद के नियम 833 का जिक्र करते हुए आईना भी दिखा दिया है।

नियम के मुताबिक रूस से आने वाला कच्चा तेल यदि किसी तीसरे देश में प्रोसेस से होकर गुजरता है तो उसे रूसी तेल नहीं माना जाएगा। जाहिर है खुद के बनाए नियम में यूरोपीय संघ फंस गया है। इसके अलावा आर्थिक प्रतिबंधों का रूस पर कोई खास प्रभाव भी नहीं पड़ रहा है। साफ है यदि यूरोपीय देश हालात पर काबू पाना चाहते हैं तो उन्हें युद्धरत रूस-यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करनी होगी। साथ ही दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान और दोहरे मापदंडों से बचना होगा अन्यथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ऐसे संगठन शो पीस बनकर रह जाएंगे।

Also Read : संपादक की कलम से: मादक पदार्थों का धंधा…

Get real time updates directly on you device, subscribe now.