हिंदी भाषा में बहुत मिठास है, इसलिए लिखता हूं: अशांत बाराबंकवी
अशांत को नाटक लिखना बेहद पसंद है। वे कहते हैं कि सन 1985 में नाटक लेखन की शुरुआत की। चूंकि नाटक में काव्य भी है, गद्य भी है और यह श्रोताओं के सामने प्रदर्शित होता है।
Sandesh Wahak Digital Desk: अंग्रेजी में पारंगत अशांत जब साहित्य की दुनिया में आए तो उन्होंने हिंदी को चुना। कहते हैं हिंदी में मिठास बहुत है। कविता व गजलों के माध्यम से मैं जो बताना चाहता हूं, श्रोता उसे हिंदी में ही सुनना चाहते हैं। साहित्य की दुनिया में आने के बाद एक अलग ही दुनिया का खूबसूरत एहसास हुआ। यही एहसास है कि अब तक नौ किताबें लिखने में सफलता मिली। यह बातें जिले के मशहूर साहित्यकार मूसा खान उर्फ अशांत बाराबंकवी ने कही। वह शुक्रवार को संदेश वाहक दफ्तर पहुंचे हुए थे।
अशांत विगत चार दशक से नाटक, कहानी, कविता, गजल, गीत और उपन्यास लिखते आ रहे हैं। शुरुआती दौर में ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर कार्यक्रमों में शिरकत करते रहे। बाराबंकी के एक सामान्य परिवार में 15 जुलाई 1959 को जन्मे मूसा खान ने अंग्रेजी से परास्नातक किया। इनके जीवन का साहित्यिक उदय 1975 में शुरू हुआ और फिर अशांत बाराबंकवी के नाम से चर्चा में आए। वे कहते हैं कि बहुत खुशी हुई जब 70 के दशक में उनकी कई रचनाएं दैनिक समाचार पत्रों में छपती थी। त्रासदी, ढाई आखर, गोदनावाला, पहली बरसात, वह सांवली लडक़ी, आधे-अधूरे खुवाब, मर गई संवेदना, लेकिन ये सच है, मैं सपने बुनता हूँ आदि के साथ गजल, कविता संग्रह सहित कुल नौ किताबों में अपनी लेखनी का जादू बिखेर चुके हैं।
सरकारी विभाग से सेवानिवृत्त हैं अशांत
अशांत को नाटक लिखना बेहद पसंद है। वे कहते हैं कि सन 1985 में नाटक लेखन की शुरुआत की। चूंकि नाटक में काव्य भी है, गद्य भी है और यह श्रोताओं के सामने प्रदर्शित होता है। अशांत को राज्यपाल के हाथों से भगवतीशरण वर्मा पुरस्कार, पड़ोसी देश नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना सम्मान, साहित्य भूषण हिंदी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश भगवतीचरण वर्मा सम्मान, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश उत्कृष्ट विकलांग कर्मचारी संम्मान 1989 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपनी लेखनी के चलते ही मिले। अशांत सरकारी विभाग से सेवानिवृत्त हैं।
अंग्रेजी में पीजी लेकिन लिखते हैं हिंदी में
अशांत बाराबंकवी ने बताया कि वह अंग्रेजी से परास्नातक हैं, लेकिन लिखते हिंदी में है। इसका कारण यह है कि हिंदी भाषा में मिठास है। अपने साहित्यिक आदर्श और गुरु के बारे में पूछे सवाल पर अशांत कहते हैं सन 1982 में योगेंद्र मधुप ने पहली बार साहित्यकार कल्पनाथ सिंह से मेरा परिचय कराया था। उनकी रचनाएं मेरी लेखनी को और सशक्त बनाने लगी। सबसे ज्यादा खुशी मिली जब (कल्पनाथ सिंह) की प्रथम पुण्य स्मरण दिवस पर मुझे उ.प्र सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद कुमार सिंह गोप के हाथों सम्मानित कराकर एक लाख रुपये का पुरस्कार दिया गया।
अशांत कहते हैं कि साहित्यिक जीवन में हाशिम अली हाशिम और अजय सिंह गुरुजी का बहुत अहम रोल है। अशांत को महाराष्ट्र के अमरावती स्थित अखिल हिन्दी साहित्य सभा द्वारा 31 हजार की पुरस्कार धनराशि सहित अहिसास जीवन गौरव सम्मान भी प्रदान किया गया है।
अशांत की कुछ चर्चित रचनाएं
- इश्क हमने न किया
- हुए जाते हैं वो बेकरार
- मिलने जुलने का सिलसिला रखिए
- गमों का साया घनेरा है
- खुलेगी जिंदगी की अब किताब
- यूं दिल की धडक़नों को
- अब तो लगता है
- उनके घर के करीबतर होता
- मैं भटकता हूं अभी
- अब उनकी बेरुखी का
- आप जब खिलखिला के हंसते हैं
- प्यार की शम्मा
- इन मस्त निगाहों ने
- इक आग लगाई जाती है
- रहते हो सदा पास मेरे
Also Read: आदि कैलाश की यात्रा नौ दिन बाद हुई शुरु, 71 श्रद्धालुओं का जत्था रवाना