लखनऊ में आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने से सरकारी खजाने को हो रही करोड़ों की चपत
राजधानी लखनऊ के गली मुहल्लों में तो आवारा कुत्तों का आतंक था ही, लेकिन अब यह आतंक अस्पतालों तक पहुंच गया है।
Sandesh Wahak Digital Desk/Sachin Tiwari: राजधानी लखनऊ के गली मुहल्लों में तो आवारा कुत्तों का आतंक था ही, लेकिन अब यह आतंक अस्पतालों तक पहुंच गया है। हाल ही में केजीएमयू में आवारा कुत्तों ने दो चिकित्सकों और एक कर्मचारी समेत सात लोगों को अपना शिकार बनाया। ऐसा लगता है, जिम्मेदार बेपरवाह बने हुए हैं। जिसका सीधा असर आम जनता के साथ-साथ सरकारी खजाने पर भी पड़ रहा है। मुख्य सडक़ों से लेकर गली-मोहल्लों तक कुत्तों के झुंड दिखाई देते हैं। कुत्ते काटने के तमाम मामले भी रोज सामने आ रहे हैं। आए दिन बाइक सवारों को आवारा कुत्ते दौड़ाते हैं जिसकी वजह से तमाम दुर्घटनाएं भी हो जाती है, लेकिन नगर निगम के स्तर से महज औपचारिकता निभाई जा रही है।
राजधानी का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां आवारा कुत्ते परेशानी का सबब न बने हों। हालांकि खासतौर पर पुराने लखनऊ के तमाम इलाकों में कुत्तों की दहशत कुछ ज्यादा ही बरकरार है। नगर निगम के आठों जोनों में आवारा कुत्तों की वजह से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दिन हो या फिर रात शहर के सडक़ों पर आवारा कुत्तों ने आतंक मचा रखा है। यह कभी भी राह चलते लोगों पर झपट पड़ते हैं और काटकर जख्मी कर देते है। वहीं लोगों को अस्पतालों में जाकर रेबीज के इंजेक्शन लगवाने पड़ते है।
नगर निगम की लापरवाही की वजह से स्वास्थ्य विभाग पर अत्यधिक प्रेशर पड़ रहा है। नगर निगम की लापरवाही ने स्वास्थ्य विभाग पर रेबीज के वैक्सीनेशन का अत्यधिक बोझ डाल रखा है।
क्या कहता है स्वास्थ्य विभाग
सीएमओ कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार सभी सीएचसी, पीएचसी और सरकारी अस्पतालों में एंटी रेबीज वैक्सीन निशुल्क उपलब्ध है। इंफेक्टिड व्यक्ति को कुल चार इंट्राडर्मल डोज दी जाती हैं। प्राप्त डाटा के मुताबिक रोजाना लगभग 516 रोगियों को डोज लगाया जा रहा है। बाजार में एक डोज की कीमत 350 रुपए से 400 रुपए तक है। यानि कि सभी डोज की लगभग की कीमत 1700 रुपए से 2000 रुपए के बीच आती है।
सरकारी खजाने को लापरवाही से कितनी चपत
- 350×516= 180600 रुपए (प्रतिदिन)
- 180600×30= 5418000 रुपए (मासिक)
- 5418000×12= 65016000 रुपए (वार्षिक)
यानि कि लखनऊ नगर निगम की लापरवाही की वजह से सरकारी खजाने को सालाना लगभग 6 करोड़ रुपए की चपत लग रही है।
क्या कहते हैं पशु कल्याण अधिकारी
पशु कल्याण अधिकारी डा. अभिनव वर्मा बताते हैं कि नगर निगम ने आवारा कुत्तों को पकडऩे का काम ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल को दे रखा है। जिसके तहत नगर निगम से सभी जोन से आवारा कुत्तों को पकड़ा जाता है और नसबंदी की जाती है। शिकायत के आधार पर भी कुत्तों को धर पकड़ की जाती है। रोजाना 80 से 100 आवारा कुत्तों की नसबंदी की जा रही है। शहर में लगभग 95 हजार आवारा कुत्ते हैं जिनमें से लगभग 54,500 आवारा कुत्तों की नसबंदी कर दी गई हैं।
कब-कब आवारा कुत्तों ने मचाया आतंक
- मार्च में जानकीपुरम स्थित सृष्टि अपार्टमेंट में आवारा कुत्तों ने 13 वर्षीय राज आर्यन पर हमला कर दिया।
- इसी महीने वृंदावन योजना रायबरेली रोड निवासी सावित्री देवी के कुत्ते पर गली के आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया, दहशत में उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
- ठाकुरगंज में एक बुजुर्ग को आवारा कुत्तों ने अपना शिकार बनाया। आलम ये है कि कुत्तों के डर से लोगों ने बच्चों को स्कूल जाने से ही रोक दिया है।
- दो दिन पहले बाजारखाला इलाके में पांच वर्षीय मासूम इकरा पर फ्रेंच मास्टिफ पालतू कुत्ते ने हमला कर दिया।
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