शिवपाल यादव संग चुनाव प्रचार से दूरी बनाये हैं अखिलेश यादव, रास नहीं आ रहा ‘साथ’
निकाय चुनाव में शिवपाल संग चुनाव प्रचार से दूरी बनाये हैं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, सपा में नंबर दो की पोजीशन पर राम गोपाल को मिल रही तरजीह
Sandesh Wahak Digital Desk: सपा महासचिव शिवपाल सिंह यादव के बयान ने एक बार फिर न सिर्फ चाचा-भतीजे के बीच तल्ख़ रिश्तों की इबारत लिखी बल्कि भाजपा में जाने संबंधी सियासी समीकरणों को हवा देने का भी काम किया है। निकाय चुनाव में अभी तक अखिलेश और शिवपाल की जोड़ी का एक साथ चुनाव प्रचार से दूर रहना इसकी पुष्टि करने के लिए काफी है। लगता ये भी है कि अपने करीबियों को सपा से भाजपा में जाते देख शिवपाल अंदर से बेहद खफा भी हैं। हालांकि शिवपाल अपने गढ़ में सपा की प्रतिष्ठा बचाने की जद्दोजहद करने में शिद्द्त से जुटे हैं। लेकिन भाजपा को अपनी अहमियत जताने से भी उन्हें कतई परहेज नहीं है। जिससे मिशन 2024 से पहले सपा में बड़ी सियासी हलचल के संकेत नजर आ रहे हैं।
दरअसल सियासी तौर पर अखिलेश और शिवपाल भले एक दूसरे के करीब दिखने का लाख प्रयास करें, लेकिन सपा के अंदर एक शीतयुद्ध जबरदस्त तरीके से जारी है। सपा के स्टार प्रचारक होने के बावजूद शिवपाल सिंह यादव ने खुद को मानो इटावा बेल्ट में कैद कर रखा है।
सपा में शिवपाल की अहमियत बाहरी जैसी!
सियासी जानकारों के मुताबिक समाजवादी पार्टी में शिवपाल पूरी तरह खुद को मिला नहीं पा रहे हैं। इसके पीछे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का शिवपाल को निकाय चुनाव के दौरान हाशिये पर रखना है। वहीं शिवपाल के करीबियों की सपा से नाता तोडक़र भाजपा से गलबहियां तेजी से बढ़ी हैं। सपा छोडक़र भाजपा का दामन थामने वाले एक नेता के मुताबिक शिवपाल की सपा में अहमियत अब बाहरी जैसी है। अखिलेश के करीबियों की टीम इसके लिए खासी जिम्मेदार है। उसने सपा में नंबर दो की पोजीशन पर राम गोपाल को ही तरजीह देना शुरू किया है।
निकाय चुनाव ने सपा को दिया तगड़ा झटका
अखिलेश के मौन समर्थन ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है। टिकट बंटवारे में भी शिवपाल को शीर्ष नेतृत्व ने हाशिये पर ही रखा था। तभी छह बार के विधायक व शिवपाल के बेहद करीबी नरेंद्र सिंह यादव ने भी अपने बेटे व बेटी के साथ सपा छोडक़र भाजपा का दामन थामना ज्यादा मुनासिब समझा। इससे निकाय चुनाव के दौरान फर्रुखाबाद और इटावा बेल्ट में सपा को तगड़ा सियासी झटका लगा है।
हाशिये से उभरा दर्द दे रहा बड़ी सियासी हलचल का संकेत
हाल में जब बिहार सीएम नीतीश अखिलेश से मिलने लखनऊ आए तब शिवपाल बैठक में दिखे, रिसीव करने एयरपोर्ट भी गए। लेकिन अखिलेश ने अपने साथ अहम मौकों पर शिवपाल को गैरहाजिर ही रखना मुनासिब समझा। इसके पीछे समाजवादी पार्टी में शिवपाल को आगे बढ़ाने से बगावत के सुर बुलंद होने का खतरा भी बताया जा रहा है।
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