निकाय चुनाव: Ticket वितरण ने खोली BJP की कथनी और करनी की पोल
निकाय चुनाव के टिकट वितरण (Ticket Distribution) में भाजपा की कथनी और करनी की पोल खुल कर सामने आ गई।
Sandesh Wahak Digital Desk/Rakesh Yadav। निकाय चुनाव के टिकट वितरण (Ticket Distribution) में भाजपा की कथनी और करनी की पोल खुल कर सामने आ गई। दूसरे दलों पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाली भाजपा खुद टिकट वितरण में इस भंवरजाल से ऊपर नहीं उठ पायी और राजधानी के तमाम वार्डों में निवर्तमान पार्षदों की पत्नियों और अन्य रिश्तेदारों को जमकर टिकट बांटे। इसे लेकर पार्टी के अंदरखाने असंतोष दिखाई दे रहा है।
लंबे समय से भाजपा से जुड़ी कई महिला नेताओं का आरोप है कि पांच साल पति पार्षद रहे, अब पांच साल पत्नी पार्षद होंगी। अगले पांच वर्ष फिर पति पार्षद होंगे और पांच साल बाद फिर पत्नी पार्षद होंगी। यह हाल रहा तो काफी लंबे समय से जुड़ी महिला कार्यकर्ताओं को चुनाव लडऩे का मौका ही नहीं मिलेगा। पार्टी के पूर्व पार्षदों की पत्नियों को टिकट दिए जाने से नाराज महिला कार्यकर्ताओं का आरोप है कि निकाय चुनाव के टिकट वितरण में भाजपा की कथनी और करनी को सच सामने आ गया है।
कई पूर्व पार्षदों की पत्नियों को भाजपा ने दिया Ticket
भाजपा महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी ने विद्यावती प्रथम और तृतीय मेें 5 वर्ष पहले पुरुष के लिए यह दोनों सीट रिजर्व थी। पुरुष ही पार्षद हुए। 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने के बाद चुनाव आयोग ने इन सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया। इन सीटों पर पिछले पांच साल तक पार्षद रहे पुरुषों की पत्नियों को टिकट दे दिया गया। पार्टियों को यह देखना चाहिए था की पूर्व पार्षद की पत्नियां पढ़ी लिखी हैं या नहीं, वह क्षेत्र की समस्याओं का निराकरण करा सकती है या नहीं। वह सदन की कार्यवाही में शामिल होकर अपनी बात को सलीके से रख पाएंगी यह भी एक बड़ा सवाल है। इन सब बातों को नजरअंदाज कर टिकट दे दिए गए।
पार्टी ने दिया परिवारवाद को बढ़ावा
यह वार्ड तो सिर्फ बानगी भर हैं। पार्टी ने तमात वार्डों में पूर्व पार्षद की पत्नियों को टिकट देकर वर्षों से पार्टी के लिए अपना घर-परिवार से समय निकाल कर पार्टी के काम कर रही महिलाओं को टिकट से वंचित रहना पड़ा है। महिला कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पार्टी ने इन सीटों पर जीत को बरकरार रखने के लिए पार्षद की पत्नियों को टिकट दे दिया लेकिन हम लोग जो लंबे समय से पार्टी के लिए जी जान और निष्ठा से जुड़े रहे उसका क्या। पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पुरुष सीट को महिला सीट करने की क्या आवश्यकता थी। आलम यह हो गया है कि 5 वर्ष पार्षद उपरांत 5 वर्ष उनकी पत्नी फिर अगले 5 वर्ष पार्षद 5 वर्ष उनकी पत्नी।
पत्नी, बहू के नाम पर पार्षदी बरकरार रखने की जंग
राजधानी के दर्जनों की संख्या में पूर्व पार्षद किसी भी कीमत पर पार्षदी को घर से बाहर जाने देने के लिए तैयार नहीं है। कोई पत्नी के माध्यम से तो कोई मां के नाम पर तो कोई बहू के नाम पर पार्षदी को अपने कब्जे में रखने की फिराक में जुटा हुआ है। यह सच निकाय चुनाव के दौरान घरों एवं मोहल्लों में लगाए गए स्टीकर, पोस्टर एवं पम्पलेट में आसानी से देखा जा सकता है। अधिकांश स्टीकर व पोस्टरों में पार्षद प्रत्याशी के साथ पति, ससुर या अन्य सदस्य की फोटो लगी नजर आ रही है।