संपादकीय: आतंकी हमलों पर लगाम कब?
जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले थम नहीं रहे हैं।
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले थम नहीं रहे हैं। आतंकियों ने पुंछ में पहले सेना के वाहन पर ताबड़तोड़ फायरिंग (rapid firing) की फिर ग्रेनेड फेंके। इस हमले में पांच जवान शहीद हो गए और सेना का एक वाहन जलकर राख हो गया। आतंकियों की तलाश जारी है। हालांकि अभी तक किसी आतंकी संगठन (terrorist organization) ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। इन सबके बीच कई सवाल उठ रहे हैं।
सवाल यह है कि…
- तमाम कोशिशों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में आतंकियों का पूरी तरह सफाया क्यों नहीं हो पा रहा है?
- क्या हमलों के पीछे विदेश से संचालित आतंकी संगठनों के स्थानीय स्लीपर सेल का हाथ है?
- आतंकी, वारदात को अंजाम देकर कहां लापता हो जाते हैं?
- खुफिया तंत्र को संगठित हमले की पूर्व सूचना क्यों नहीं मिल सकी?
- क्या बिना स्लीपर सेल (Sleeper Cell) को खत्म किए आतंकवाद का खात्मा किया जा सकता है?
- क्या सेना, सरकार और पुलिस को आतंकियों के खिलाफ अपनी रणनीति बदलनी चाहिए?
- सीमा पार से आने वाले आतंकियों को सहायता कौन पहुंचा रहा है?
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद बड़ी आतंकी घटनाओं में भले कमी आयी हो हालात पूरी तरह नियंत्रण में नहीं आ सके हैं। आतंकी कभी टारगेट किलिंग तो कभी पुलिस और सेना पर हमला कर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं।
पिछले तीन सालों में 600 आतंकी घटनाएं घटी
आंकड़ों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में पिछले तीन सालों में हर वर्ष औसतन दो सौ से अधिक आतंकी घटनाएं (terrorist incidents in india) घटी हैं। 2020 में यहां 244 टेररिस्ट हमले हुए जिसमें 221 आतंकवादी मारे गए जबकि 62 जवान शहीद हुए। वहीं 106 जवान जख्मी हुए। 2021 में आतंकी घटनाएं दौ सौ के आसपास हुईं, इसमें 182 आतंकी मारे गए और 42 जवान शहीद हुए थे। 2022 में 242 आतंकी घटनाएं हुई, 172 आतंकी मारे गए और 31 जवान शहीद हुए। जाहिर है, टेररिस्ट घटनाओं का सिलसिला थम नहीं रहा है। इसमें दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं के पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पाकिस्तान का हाथ है।
धारा 370 हटने से बौखलाया गया है पाकिस्तान
पाकिस्तान के हुक्मरान, सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई अपने पाले संगठनों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर रही है। धारा 370 के हटने से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है और इस मामले में जब उसे विश्व शक्तियों का साथ नहीं मिला तो वह आतंकवादी हमलों के जरिए विश्व को यह संदेश देना चाहता है कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ ठीक नहीं है। ये टेररिस्ट संगठन अब सीधे सेना पर हमला करने की जगह स्थानीय युवाओं को बरगला कर ऐसा करा रहे हैं। वारदात के बाद आतंकियों का पता नहीं लगना इसकी पुष्टि करता है कि इसमें स्थानीय स्लीपर सेल का हाथ है वरना जटिल भौगोलिक परिस्थिति वाले क्षेत्र में किसी अनजान का घटना के बाद गायब होना संभव नहीं है।
साफ है सेना को न केवल अपने खुफिया तंत्र को और मजबूत करना होगा बल्कि स्लीपर सेल को चिन्हित कर उनका यथाशीघ्र खात्मा करना होगा अन्यथा ये सिलसिला शायद ही कभी थमे।
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