भीषण गर्मी के बीच दिल्ली में 50 शव बरामद, हीट स्ट्रोक से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ी

Sandesh Wahak Digital Desk: राष्ट्रीय राजधानी में भीषण गर्मी का प्रकोप जारी रहने के बीच पिछले 48 घंटों के दौरान दिल्ली के विभिन्न हिस्सों से वंचित सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से जुड़े 50 लोगों के शव बरामद किए गए।

हालांकि, पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों ने इसकी पुष्टि नहीं की है कि क्या सभी की मौत गर्मी से संबंधित कारणों से हुई।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि बुधवार को इंडिया गेट के निकट बच्चों के पार्क में 55 वर्षीय एक व्यक्ति का शव मिला। उन्होंने बताया कि मौत के कारण का पता लगाने के लिए पोस्टमार्टम कराया जाएगा।

बेघर लोगों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट’ ने दावा किया है कि 11 से 19 जून के बीच दिल्ली में भीषण गर्मी के कारण 192 बेघर लोगों की मौत हुई। भीषण गर्मी का प्रकोप जारी रहने के चलते ‘लू’ लगने से जान गंवाने वाले लोगों और यहां अस्पतालों में इससे पीड़ित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है।

गंभीर जल संकट से जूझ रही दिल्ली में अधिकतम तापमान सामान्य से चार डिग्री अधिक 43.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। शहर में न्यूनतम तापमान 35.2 डिग्री सेल्सियस रहा जो 1969 के बाद जून में सबसे अधिक है। केंद्र द्वारा संचालित राममनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में पिछले दो दिन में 22 मरीज लाए गए। अस्पताल में पांच मौतें हुई हैं और 12 से 13 मरीज वेंटिलेटर पर हैं।

लू लगने की वजह से मौत की आशंका

अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया पीड़ितों को कोई अन्य बीमारी नहीं थी। जब ऐसे लोग अस्पताल आते हैं, तो उनके शरीर का तापमान दर्ज किया जाता है और यदि यह 105 डिग्री फारेनहाइट से अधिक पाया जाता है तथा कोई अन्य कारण नहीं होता है, तो उन्हें लू से पीड़ित मरीज घोषित कर दिया जाता है।

उन्होंने बताया लू के कारण मरने वालों को हीटस्ट्रोक का संदिग्ध मामला घोषित किया जाता है। दिल्ली सरकार की एक समिति है जो बाद में मौतों की पुष्टि करती है।

शरीर को तुरंत ठंडा करने के लिए अस्पताल ने अपनी तरह की पहली ‘हीटस्ट्रोक यूनिट’ स्थापित की है। अधिकारी ने कहा, ‘‘इस यूनिट में कूलिंग तकनीक है और मरीजों को बर्फ और पानी से भरे बाथटब में रखा जाता है। जब मरीज के शरीर का तापमान 102 डिग्री फारेनहाइट से नीचे चला जाता है, तो उनकी निगरानी की जाती है। अगर उनकी हालत स्थिर होती है, तो उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है। अन्यथा, उन्हें वेंटिलेटर पर रखा जाता है। भर्ती होने वाले ज्यादातर मरीज मजदूर हैं।

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